धरती पर जीवन जीने के लिये वृक्षों का होना आवश्यक है, यह कथन पूर्ण रूप से सत्य है, लेकिन आज के समय में यह सिर्फ एक कथन बनकर ही रह गया है। इंसान अपने स्वार्थ के लिये वृक्षों का लगातार दोहन कर रहा है, जिससे धरती का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। धरती में बारिश की कमी के कारण तापमान अत्यधिक बढ़ता ही जा रहा है, जो कि जीवन जीने के लिये सही नहीं हैं। पूरे सौरमण्डल में धरती ही एक ऐसा ग्रह है, जहाँ पर जीवन संभव है, और यह भी इसलिये कि यहाँ का प्राकृतिक पर्यावरण जीवन के अनुकूल है। यहाँ पर जो वातारवण देखने को मिलता है और जिस पर्यावरण में हम जीवित रहे पाते हैं, उसमें वृक्षों का अहम स्थान है, सही मायने में देखा जाये तो यदि धरती पर वृक्ष ही नहीं होंगे तो लोगों को साँस लेने के लिये ऑक्सीजन कहाँ से प्राप्त होगी यदि धरती पर जीवित रहना है तो वृक्षों को नष्ट होने से बचाना होगा। वृक्षों की आध्यात्मिक प्रेरणा का लाभ प्राप्त करने के लिये प्राचीनकाल में गुरूकुल, गुरू आश्रम, मन्दिर, जलाशय आदि वृक्ष-कुंजों से आच्छादित हुआ करते थे। उनकी शीतल छाया में विद्यार्थी पढ़ा करते थे। प्रकृति की सघन शोभा उनके मस्तिष्क में सदाचार, संयम, सेवा, सुरूचि, सुचिता और सुव्यवस्था के भाव भरा करती थी। जो लोग भूगोल पढ़ते हैं, उन्हें मालूम होगा कि अब पहाड़ों पर बर्फ का जमना धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। पहले जितनी मोटी परत जमती थी, अब नहीं जमती, गर्मी आती है, सूर्य तपता है तो यह बर्फ थोड़े समय में ही गलकर बह जाती है। उत्तर भारत को वर्षभर पानी देने वाली गंगा और यमुना में भी अब पहले जितना पानी नहीं आता। इसका मूल कारण है-वृक्षों और वनों का बढ़ता हुआ अभाव। हरे वृक्षों वाले वन आपको आकर्षित करते हैं और पानी बरसने में सहायक होते हैं। वृक्षों की संख्या घटने से वर्षा की सघनता भी कम होने लगी और उसका दुष्प्रभाव अब सिंचाई जैसे महत्वपूर्ण कार्यों पर पड़ रहा है। वृक्ष अधिक हों तो जल भी अधिक मिलेगा और घरों में प्रयोग के लिये लकडियाँ भी मिलती रहेंगी। आज के समय में जिस तरह से लोग अपने स्वार्थ के लिए वृक्षों का कटान कर रहे हैं, उसके कारण इमारती लकड़ी के अभाव में भवन-निर्माण बहुत महंगा हो गया है। भारतीय स्थापत्य कला का सम्पूर्ण गौरव ही नष्ट हो गया है, पर साधारण काम जैसे रोटी आदि बनाने के लिये भी लकडियाँ पर्याप्त उपलब्ध नहीं होती। फलतः गाँवों की आधी खाद ईंधन के रूप में जला दी जाती है, उसका दुष्प्रभाव कृषि की उपज पर पड़ता है। पहले की अपेक्षा खेती की उपजाऊ शक्ति भी अब आधी रह गई है। अब यह परिस्थिति बिगड़ गई है। कल और भी बिगडेगी, क्योंकि कार्बनड़ाई ऑक्साइड और हम जो गंदगी पैदा करते हैं, उसका विषपान करने वाले वृक्ष कम होते जा रहे हैं। वृक्ष न रहेंगे तो इस ढेर सारी गन्दगी का दबाव मनुष्य की सहनशक्ति से बाहर हो जायेगा। उसकी आयु, स्वास्थय,शक्ति सब पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। वृक्ष स्वच्छ और ताजी वायु प्राणियों को देते रहते हैं, उससे मनुष्य का पोषण होता है। वृक्ष फल देते हैं, जिससे खाद्य समस्या का निदान होता है। प्रकृति की मधुरता, दया और मातृत्व का अनुभव हमें वृक्षों ने ही कराया। कितने-कितने सुन्दर, रस-युक्त, स्वादिष्ट और शक्तिवर्धक फल परमात्मा ने मनुष्य को दिये हैं, उनकी कल्पना करें तो हृदय श्रद्धा से नतमस्तक हो उठता है। पर कोरी श्रद्धा से काम भी तो नहीं चलता। जहाँ वृक्षों के सैकड़ों अनुदान और वरदान हमें मिलते हैं, वहाँ हमारा भी तो कर्तव्य है कि उनकी वंशावली बढायें। पुराणों में यह बात धार्मिक महत्व देकर प्रकरान्तर से कही गई है। युग-निर्माण योजना ने उसे विज्ञान और बुद्धि-संगत रूप में प्रस्तुत किया है, उससे कोई भी व्यक्ति इन्कार नहीं कर सकता। इसलिये वृक्षारोपण को एक परम पुनीत कर्तव्य मानकर उसे एक अभियान के रूप में चलाया जाना चाहिये।
वृक्षों के परिधान पृथ्वी माता की शोभा बढ़ातें हैं, उसके लिये हमें भी योगदान करना चाहिये। वृक्षों व वनों से हमेशा से ही लोगों को लाभ मिलता है, इंसान की हर जरूरत को पूरा वृक्षों और जंगलों से किया जाता है। जंगलों का कटान हमारे जीवन के लिये अत्यधिक हानिकारक हो सकता है, साथ ही जंगलों में रहने वाले जीव-जन्तुओं को भी इससे भारी नुकसान होगा। हमारी धरोहर को बचाये रखने के लिये सभी को अपने स्तर पर कार्य करना होगा। सभी जगहों पर साफ-सफाई का विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। गाँवों में हर किसान के पास कुछ न कुछ बंजर या कम उपजाऊ भूमि होती ही है, चाहें तो उसका वृक्षारोपण में अच्छा उपयोग किया जा सकता है, किन्तु आलस्यवश लोग उस भूमि का उपयोग नहीं कर पाते। जंगलों से जलाने के लिये लकडियाँ मिलती हैं। छत पाटने के लिये शहतीरें और धन्नियाँ मिलती हैं। खाने और विक्रय के लिये भी स्वादिष्ट फल उपलब्ध होते हैं। औषधियाँ और तेल आदि मिलते हैं, सैकड़ों लोगों का जीवन लकड़ी, फल आदि के विक्रय के द्वारा वृक्षों पर ही आधारित रहता है। गाँवों में फसलों की रक्षा और सुशीतल छाया के लिये भी यह वृक्ष अत्यन्त उपयोगी और आवश्यक होते हैं। वृक्षों की उपयोगिता का लाभ उठाने के लिये सरकारी तौर पर वन-विभाग ही काम करता है । यदि हम पृथ्वी पर जीवन सुखमय चाहते हैं, तो हमें पर्यावरण को स्वच्छ रखने की आवश्यकता है ताकि हमारे वंशज यह न कहें कि हमारे पूर्वजों ने पर्यावरण को हमारे जीवन जीने लायक ही नहीं छोड़ा। प्राकृतिक पर्यावरण को यदि हमेशा के लिये सही-सलामत रखना है तो हमें पेड़-पौधों का कटान बंद करना होगा, गलत तरीके से हो रहे भूमि कटान को भी बंद करना होगा, ताकि धरती पर हो रहे अत्याचार से हम धरती को मुक्त कराने का प्रयास कर सकते हैं। आज के दौर में प्राकृतिक पर्यावरण को इंसान द्वारा छेड़छाड़ करने से यहाॅ के पर्यावरण पर भारी प्रभाव पड़ा है। आज के समय में जिस तरह से पर्यावरण संरक्षण के प्रति कुछ लोग जागरूक हो रहे हैं, ऐसे ही यहाॅ उसी तरह दूसरी ओर कुछ स्वार्थी लोग पेडों का कटान भी कर रहे हैं, पहाड़ों में अभी कुछ पेड़ जिन्दा हैं तो वहाँ पर बारिश फिर भी हो जाती है, लेकिन शहर के लोगों को बारिश की बूंदें भी नसीब नहीं होती हैं। यदि हम अपने स्वार्थ को दरकिनार करते हुये वृक्षारोपण करें और वातावरण को धरती के अनुकूल बनाने में सहायता करेंगे तो धरती का तापमान धीरे -धीरे कम होने लगेगा और वातावरण अनुकूलित बना रहेगा। इसलिये हमेशा वृक्षारोपण करते रहना चाहिये और जितना ज्यादा हो सके वृक्षों को कटने से बचाना चाहिये।
पिछले कुछ वर्षों से सरकार द्वारा भी वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जा रहा है, प्रत्येक वर्ष विश्व पर्यावरण के दिन और अन्य कई उपलक्ष्यों में भी वृक्षारोपण किया जा रहा है। शहरों में अब पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने के लिए वृक्षारोपण पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, जिसके कारण अब वातावरण भी कुछ हद तक संतुलित बना हुवा है और मौसम में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। जिस तरह से गर्मी अत्यधिक बढ़ रही थी, उसमें अब परिवर्तन आया है। इसलिए यदि हम स्वयं वृक्षों के महत्व को समझ जायेंगे तो यह हम सबके लिए ही लाभदायक होगा। जीवन में किसी भी प्रकार की बीमारी से बचने के लिए पर्यावरण को बचाना अति आवश्यक होता है, यदि पर्यावरण संतुलित रहेगा तो धरती पर जो समय-समय पर आपदाये आ रही हैं उनमें भी लगाम लग सकती है, लेकिन उसके लिए हम सबको अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा और अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना होगा। पर्यावरण को बचाने के लिए ही पूरे विश्व में एक दिन अर्थात प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।