15 मार्च को मनाया जायेगा उत्तराखंड का लोकपर्व ‘फूलदेई’

फूलदेई छम्मा देई ।

फूल देई छम्मा देई ।

दैणी ,द्वार भर भकार।

यो देलि कु नमस्कार ।

जतुके दियाला ,उतुके सई ।।

MY BHARAT TIMES, 14 मार्च 2023, देहरादून। इस वर्ष फूलदेई का त्यौहार 15 मार्च 2023 को मनाया जाना है। फूलदेई त्यौहार चैत्र माह की संक्रांति को मनाया जाता है। इस समय वसंत ऋतु का आगमन होता है, चारों तरफ फूलों से प्रकृति सुसज्जित होती है। यह त्यौहार मुख्यतः छोटे छोटे बच्चो द्वारा मनाया जाता है। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व है। फूलदेई त्यौहार बच्चों द्वारा मनाए जाने के कारण इसे लोक बाल पर्व भी कहते हैं। फूल सग्यान ,फूल संग्रात या मीन संक्रांति उत्तराखंड के दोनों मंडलों में मनाई जाती है।

कुमाऊं-गढ़वाल में इसे फूलदेई और जौनसार में गोगा कहा जाता है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में सौर कैलेंडर का उपयोग किया जाता है। इसलिए इन क्षेत्रों में हिन्दू नव वर्ष का प्रथम दिन मीन संक्रांति अर्थात फूलदेई से शुरू होता है। इस समय प्रकृति में विभिन्न प्रकार के फूल खिले रहते हैं । फूलदेइ पर्व के रूप में देवतुल्य बच्चों द्वारा प्रकृति के सुन्दर फूलों से नववर्ष का स्वागत किया जाता है।

फूलदेई के दिन सबसे पहले सुबह घर की साफ़-सफाई करने के उपरांत स्नान करने के बाद अपने-अपने घरों की देहरी में फूल और चावल चढ़ाये जाते हैं। इस दिन बच्चे जंगलों से प्योंली और बुराँश आदि के फूल लेकर आते हैं। उसके बाद घर के छोटे-छोटे बच्चे आस-पड़ोस के घरों में भी फूल और चावल आदि चढ़ाते हैं और दरवाजे पर फूल चढ़ा कर फूलदेई के गीत , ”फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार” गाते हैं। उन घरों से बच्चों को प्रसाद-दक्षिणा और घर के बड़ों के द्वारा अपना आशीर्वाद दिया जाता है।

छोटे छोटे देवतुल्य बच्चे सभी की देहरी में फूल डाल कर शुभता और समृधि की मंगलकामना करते हैं। इस पर गृहणियां उनकी थाली में ,गुड़ और पैसे रखती हैं। बच्चों को फूलदेई में जो आशीष और प्यार स्वरूप में जो भेंट मिलती है ,उससे अलग अलग स्थानों में अलग अलग पकवान बनाये जाते हैं। फूलदेई से प्राप्त चावलों को भिगा दिया जाता है और प्राप्त गुड़ को मिलाकर और पैसों से घी/तेल खरीदकर बच्चों के लिए हलवा, छोई, शाइ, आदि पकवान बनाये जाते हैं।

उत्तराखंड के केदारखंड अर्थात गढ़वाल मंडल में यह त्यौहार पूरे महीने चलता है। यहाँ बच्चे फाल्गुन के अंतिम दिन अपनी फूल कंडियों में युली ,बुरांस ,सरसों ,लया ,आड़ू ,पैयां ,सेमल ,खुबानी और भिन्न -भिन्न प्रकार के फूलों को लाकर उनमें पानी के छींटे डालकर खुले स्थान पर रख देते हैं। अगले दिन सुबह उठकर प्योंली के पीताम्भ फूलों के लिए अपनी कंडियां लेकर निकल पड़ते हैं और मार्ग में आते-जाते वे ये गीत गाते हैं। ”ओ फुलारी घौर, झै माता का भौंर। क्यौलिदिदी फुलकंडी गौर । ” प्योंली और बुरांश के फूल अपने फूलों में मिलकर सभी बच्चे आस-पास के दरवाजों ,देहरियों को सजा देते है। और सुख समृद्धि की मंगल कामनाएं करते हैं। फूल लाने और दरवाजों पर सजाने का यह कार्यक्रम पूरे चैत्र मास में चलता रहता है।

अंतिम दिन बच्चे घोघा माता की डोली की पूजा करके विदाई करके यह त्यौहार सम्पन्न करते हैं। वहाँ फूलदेई खेलने वाले बच्चों को फुलारी कहा जाता है। गढ़वाल क्षेत्र में बच्चो को जो गुड़ चावल मिलते हैं,उनका अंतिम दिन भोग बना कर घोघा माता को भोग लगाया जाता है। घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है। घोघा माता की पूजा केवल बच्चे ही कर सकते हैं। फुलारी त्यौहार के अंतिम दिन बच्चे घोघा माता का डोला सजाकर, उनको भोग लगाकर उनकी पूजा करते हैं।

 

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