धरती पर रहने वाला कोई भी प्राणी क्यूॅ न हो, उसकी सोच के आधार पर उसका व्यक्तित्व दूसरे के सामने उजागर होता है। जिस प्रकार हम शेर के सामने जाने से डरत हैं, हमें ज्ञात होता है कि उसकी सोच यह है कि यदि हम उसके सामने गये तो वह हम पर अवश्य हमला करेगा, यदि किसी जंगली कुत्ते के सामने जाते हैं तो वह काटने आता है, उसकी वही सोच होती है, उसी प्रकार प्रत्यके इंसान की भी अपनी-अपनी सोच होती है, जिससे उसका व्यवहार हमारे सामने प्रकट होता है। समय के साथ-साथ मनुष्य की सोच भी बदलने लग गई है। आज के समय में मनुष्य की सोच अधिकतर बुरे कामों में लगी रहती है। मनुष्य जिस प्रकार की सोच को अपने स्वभाव में लाता है, वह उसी प्रकार से अपने जीवन में आगे का रास्ता भी तय करता है। यदि मनुष्य की सोच सही है तो वह अपना जीवन एक अच्छे काम में लगायेगा और जीवन में ऊँचा मुकाम हासिल करेगा, यदि सोच ही गलत है तो वह ऊँचा मुकाम हासिल करना तो दूर, वह यह भी तय नहीं कर पाता है कि आखिर उसे करना क्या है। मनुष्य जीवन में बाल्यकाल से ही बच्चे की सोच को सही दिशा में अग्रसर करना चाहिये। यदि बचपन से ही सोच सही रहती है तो आगे चलकर जीवन में बच्चा बहुत कुछ कर जाता है। कहा भी जाता है कि नजरिया तेरा……………….सोच तेरी…………….तो क्यों बोले किसी और की जुबानी, सोच को लफ्जों का रूप दे और इन लफ्जों को आजाद होने दे। मनुष्य की सोच ही है जो उसे बनाती भी है और बिगाडती भी है। मनुष्य का बचपन ही है जब उसकी सोच को माता-पिता और गुरूओं तथा अन्य जनों के माध्यम से एक आकार दिया जाता है और बाद में उसी के आधार पर एक स्थायी सोच उस मनुष्य के दिमाग पर स्थिर हो जाती है। बचपन में जो सीख उसे मिलती है वह उसके दिमाग में इस प्रकार घर कर जाती है कि उसे आगे चलकर बदलना भी लगभग नामुमकिन सा हो जाता है। आज के समय में देखा जाये तो स्कूलों में भी बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान के अलावा और कुछ नहीं सिखाया जा रहा है। शिक्षा को एक व्यवसाय के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। यदि बच्चों के दिमाग में सिर्फ किताबी ज्ञान न भरकर उस दिमाग में कुछ हद तक संस्कार व अन्य विचारों को समाया जाये तो हो सकता है कि बच्चा आगे चलकर कुछ अच्छा कर जाये। आखिर क्यों आज सिर्फ किताबी ज्ञान पर ही जाकर शिक्षक रूक जाते हैं ? क्यों बच्चों की सोच के बारे में जानने की कोशिश नहीं की जाती है, यदि स्कूल समय में आधा घंटा भी या सप्ताह में एक दिन बच्चों को किसी न किसी विषय पर विचार रखने के लिये कहा जाये तो हो सकता है कि उन बच्चों को समाज में रहने व संस्कारों का ज्ञान भी प्राप्त हो सके। आज की पढ़ाई और प्राचीन काल की पढ़ाई में अन्तर देखें तो साफ तौर पर देखा जा सकता है कि किस प्रकार से प्राचीन काल में बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान न देकर उन्हें व्यवहारिक ज्ञान भी दिया जाता था, और आज के समय में सिर्फ किताबी ज्ञान को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। प्राचीन काल में यह समझाया जाता था कि किस प्रकार से सीखे हुये ज्ञान का उचित प्रयोग किया जा सकता है। आज के समय में बच्चों पर किताबों का इतना बोझ है कि उनका सारा समय उनको रटने में ही लग जाता है, फिर और किसी के बारे में सोचने का या बाहर की दुनिया से रूबरू होने का उनके पास समय ही नहीं होता है। आज के बच्चों पर किताबी ज्ञान का जितना बोझ अध्यापकों व स्कूलों से मिलता है, उतना ही बोझ उन पर अभिभावकों द्वारा भी डाला जाता है। हमें अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है, बच्चों पर न सिर्फ किताबी ज्ञान का दबाव डालना चाहिये बल्कि उस किताबी कीड़े से बाहर निकलकर और भी बातों पर सोचने का समय उसे दिया जाना चाहिये। आज के शिक्षक न सिर्फ बच्चों को रोबोट की तरह तैयार करें बल्कि वह छात्र बनाये जो अपनी सोच के अनुसार अपने आप को चलाने में सहज हों, तभी वास्तविक शिक्षा का उद्देश्य पूर्ण होगा। बच्चों में पढ़ाई के अलावा ऐसी सोच भी जागृत करने की आवश्यकता है कि जिससे वह किसी भी काम को आसानी से कर सकें। उनको भरोसा दिलाना होगा कि यदि वह ठान लेते हैं, तो वह किसी भी काम को आसानी से कर सकते हैं। मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। यदि मन में ठान लिया तो उस काम को दिल लगाकर सही सोच के आधार पर करना चाहिये, ताकि उस काम को पूर्ण किया जा सके। आज के समय में जिस प्रकार से चोरी-डकैती, लूटपाट, और आतंकवादियों ने देश में जन्म लिया है, उसका कारण भी एक प्रकार से सोच ही है। मनुष्य की सोच जब खराब हो जाती है तो वह बुरे मार्गो की ओर अग्रसर हो जाता है और ऐसे कामों को अंजाम दे देता है, जिससे समाज व देश का अहित हो जाता है। कई जगहों पर बच्चों को बचपन से ही शिक्षा नहीं दी जाती है, जिसके कारण उनको अपने गुजर-बसर के लिये गलत कार्यों की तरफ जाना पड़ता है। इसलिये शिक्षा किताबी और व्यवहारिक दोनों ही आज के समय में आवश्यक है, यदि शिक्षा ही प्राप्त नहीं होती है तो बच्चे गलत मार्ग को अपना लेते है, जो उन्हें उठाता नहीं है बल्कि उनकी जिंदगी को नीचे गिराता जाता है। यदि मनुष्य की सोच सही दिशा में होती है तो वह हमेशा ऊपर ही उठता जाता है साथ ही समाज व देश का नाम भी रोशन करता है। इसीलिये देखा जाता है कि जहाॅ पर मनुष्य की सोच सही होती है, वहाॅ पर उसके चेहरे पर सही भाव अपने-आप उजागर होते हैं, यदि इंसान गलत हो तो उसका चेहरा उसके अंदर छिपे हुये शैतान को उजागर कर देता है। इसलिये हमेशा अपनी सोच को सकारात्मक रखने की आवश्यकता है, ताकि दूसरा भी हमारे लिये गलत न सोचे।