हरेले के अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने किया वृक्षारोपण
देवभूमि उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार के पर्व मनाये जाते हैं, जिनमें से कई पर्व प्रकृति से जुड़े होते हैं। ऐसा ही एक पर्व है- उत्तराखंड का लोक पर्व “हरेला”। यह त्यौहार संपन्नता, हरियाली, पशुपालन और पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देता है। उत्तराखण्ड़ में मनाये जाने वाले लोक त्यौहारों में से एक यह त्यौहार लगभग हर साल सोलह जुलाई को मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि हिन्दू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करता है तो उसे कर्क संक्रांति कहते है, तिथि-क्षय या तिथि वृद्धि के कारण ही यह पर्व एक दिन आगे-पीछे हो जाता है। जो लोग प्रकृति प्रेम से दूर हो रहे हैं, वह भी इस दिन प्रकृति को अवश्य याद करते हैं। इस दिन वृहद् स्तर पर जगह-जगह पर वृक्षारोपण किया जाता है। इस बार हरेले के अवसर पर उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में 2.75 लाख पौंधों का वृक्षारोपण होना निर्धारित किया गया है। इसके लिये मुख्यमंत्री और जिलाधिकारी ने सभी को निर्देश भी दिये हैं कि इस साल कोरोना महामारी के चलते सामाजिक दूरी व मास्क का प्रयोग करते हुये वृक्षारोपण अवश्य करें। वृक्षारोपण के साथ ही हमें उन वृक्षों का कुछ समय तक ध्यान भी रखना होता है, अन्यथा वह नष्ट भी हो जाते हैं। पर्यावरण को बचाने के लिये हम सभी को काम से काम एक पेड़ लगाकर उसकी रेख-देख भी अवश्य करनी चाहिये, उस पेड़ को भी अपने बच्चे के समान ही समझकर उसका पालन-पोषण करना चाहिये ताकि वह पेड़ बड़ा होकर हमें जीवनदायिनी ऑक्सीजन दे सके। देवभूमि उत्तराखण्ड में यदि कोई व्यक्ति वृक्षारोपण करना भूल जाता है, या फिर उसे वृक्षों की याद नहीं आती है तो उसे याद दिलाने के लिये ‘हरेला पर्व’ का दिन उचित माना जाता है।
इस दिन के लिये कहा जाता है कि यदि हम किसी पौंधे की टहनी भी लगा देते हैं, तो वह भी लग जाती है, क्योंकि इस समय बरसात का मौसम होता है और यदि पौंधे को पानी मिलता रहेगा तो वह अवश्य लग जायेगा। इस पर्व को मनाने के लिये दस दिन पूर्व घरों में पूजा स्थान में किसी जगह या छोटी डलियों में मिट्टी बिछाकर सात प्रकार के बीज जैसे-गेहूँ, जौं, मूँग, उडद, मक्का, गहत, सरसों आदि बोये जाते हैं और नौ दिनों तक उसमें सुबह स्नान करने के उपरान्त जल से उसे सींचा जाता है। नौ दिनों तक सींचित करने के बाद हरेले के पर्व के एक दिन पहले इसको बांधकर इसमें रक्षा का धागा लपेटा जाता है और दो या पाँच फल रखकर इसकी गुडाई की जाती है। फिर हरेले के दिन इसको काटकर पूजा-अर्चना करने के उपरान्त बड़े बुजुर्गों के द्वारा सभी पारिवारिक लोगों को आशीर्वाद के साथ पूजा जाता है। घर के लोगों के सिर या कानों में रखने से पूर्व इसे दरवाजों के दोनों ओर या दरवाजे के ऊपर भी इसे सजाया जाता है। हरेला पूजन के समय आशीष देने की परम्परा है। इसके बोल भी लोगों के दिलों को छू जाते हैं, जब परिवार के बुजुर्ग आशीष के तौर पर इन वचनों को बच्चों से कहते हैं, तो बच्चे भी कई दिन तक उस आशीष वचनों को भूल नहीं पाते हैं। हरेले के पर्व का ज्यादा महत्व उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में माना जाता है, वहाँ पर इसी दिन से श्रावण मास का आरम्भ भी होता है। आशीष के तौर पर दिये जाने वाले वचन इस प्रकार होते हैं, जी रये जागि रये, यो दिन-मास-बार भेटनै रये, धरती जस आगव, आकाश जस चाकव होये, सियक जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो, दूब जस पंगुरिये, हिमालय में ह्यो, गंगा ज्यू में पाणी रौन तक बचि रये, सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये। बुजुर्गों द्वारा दिए जाने वाले इस आशीष वचन का अर्थ है – तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार-माह तुम्हारे जीवन में आता रहे। तुम्हें धरती जैसा विस्तार और आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो। सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले। वंश,परिवार दूब की तरह पनपे। हिमालय में हिम और गंगा में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो। यह आशीष वचन कुमाऊँ की मातृभाषा में बच्चों को दिये जाते हैं, जिससे बच्चों को अनंत सुख-सौभाग्य की अनुभूति होती है। जब बच्चों को बुजुर्गों के द्वारा आशीष वचन दिये जाते हैं, तो वह वचन बच्चों के जीवन को सुखदायी बना देते हैं, और फिर हरेले के पर्व पर दिये जाने वाले विशेष वचन अपने-आप में अनमोल होते हैं। हरेले के लिये कुछ लोगों का मानना है कि इसमें बोये जाने वाले सात प्रकार के बीज सात जन्मों के प्रतीक होते हैं।
”आकाश शिक्षा एवं सांस्कृतिक विकास समिति” द्वारा किया गया वृक्षारोपण
हरेले के दिन वृक्षारोपण का महत्व सबसे अधिक माना जाता है, इसलिये इस दिन हर तरफ वृक्षारोपण किया जाता है। वृक्ष हमारे जीवन के लिये सबसे अधिक उपयोगी हैं, यह हर इंसान को ज्ञात होना चाहिये, तभी प्रकृति में पर्यावरण को बचाया जा सकता है। प्रकृति का चक्र बहुत खूबसूरत है, संतुलन प्रकृति का नियम है। यदि पौधे ऑक्सीजन छोड़ते हैं तो कार्बन डाई ऑक्साइड लेते हैं, उसी जीवनदायिनी ऑक्सीजन का इस्तेमाल मानव जीवन के लिये नितान्त आवश्यक होता है। मनुष्य अपने जीवन में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव से होकर गुजरता है, लेकिन उसे अपने कर्तव्यों व दायित्वों तथा धरती व पर्यावरणा के प्रति अपनी कर्तव्यनिष्ठा को कभी भी नहीं भूलना चाहिये। यदि हम अपने जीवन को स्वस्थ रखना चाहते हैं, तो हरेला जैसा पर्व पूरे देशभर में मनाया जाना चाहिये, इस दिन वृक्षारोपण का महत्व अधिक होने के कारण भी यह दिन महत्वपूर्ण माना जाता है। हरेले के त्यौहार के समय हमारे पहाड़ों में कहीं पर मक्का की फसल तो कहीं पर मडुवा-झिंगोरा, दाल आदि की फसल खेतों में दिखाई देती है, जिससे हमारे खेत हरे-भर दिखाई देते हैं। हर तरफ खुशनुमा माहौल होता है, यही हरियाली लोगों को अच्छा माहौल देती है। इसलिये यदि पूर्ण भारत में यह त्यौहार मनाया जायेगा तो हर तरफ वृक्षारोपण होगा और इससे हमारा पर्यावरण शुद्ध रहेगा तथा हम सभी स्वस्थ रह पायेंगे। जीवन में इंसान जिस प्रकार से आज अपने स्वार्थ के लिये वृक्षों का दोहन कर रहा है, उससे पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है, यदि हम अपने किसी कार्य के लिये जंगलों से कुछ सूखे वृक्ष भी लेते हैं, तो जितने वृक्ष हम लेते हैं, उतने हरे वृक्ष उस स्थान पर अवश्य लगाने चाहिये। यदि धीरे-धीरे वृक्षों का दोहन होगा और हम वृक्षारोपण नहीं करेंगे तो एक दिन हमें साँस लेने के लिये भी ऑक्सीजन प्राप्त नहीं हो पायेगी। हमें सिर्फ हरेले के दिन का इंतजार नहीं करना चाहिए, जब भी समय होता है वृक्षारोपण अवश्य करना चाहिये। आज के दौर में देखा जाता है कि कई लोग तो सिर्फ हाथ लगाने के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम में जाते हैं, यदि प्रत्येक व्यक्ति वृक्षारोपण के अवसर यह सिर्फ एक पौंधा अपनी तरफ से लगा दे तो जहाँ पर दस लोगों के द्वारा 2-3 वृक्ष लगाए जाते हैं, वहाँ पर दस वृक्ष लग सकते हैं। इसलिए हमें वृक्षारोपण का दिखावा नहीं करना है, बल्कि जितना ज्यादा हो सकता है समय-समय पर वृक्षारोपण करना भी है और उनकी देखभाल भी करनी है। यदि प्रत्येक इंसान की सोच प्रकृति प्रेम के लिए सजग हो जाएगी तो हमारा पर्यावरण अपने-आप शुद्ध हो जायेगा, क्यूंकि जब करोड़ों हाथ वृक्षारोपण और उनकी देखभाल के लिए बढ़ेंगे तो पर्यावरण और प्रकृति को प्रदूषित होने से बचाना कोई मुश्किल काम नहीं है। इसलिए हरेले के अलावा भी हमें समय-समय पर वृक्षारोपण अवश्य करना चाहिए।