वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि पहले ही ग्लोबल वॉर्मिंग से जूझ रही दुनिया में अल नीनो का असर अधिक घातक हो सकता है। मसलन खाद्य संकट बढऩे के साथ-साथ इसकी वजह से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां भी फैल सकती हैं। दुनिया अब तक कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध के असर से नहीं उबरी है। ये घटनाएं खाद्य संकट और महंगाई का कारण बनीं। इसी बीच अब खबर है कि मौसमी परिघटना अल नीनो प्रभाव का असर धीरे-धीरे बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसके कारण आने वाले महीनों में तापमान बहुत अधिक रहेगा और मौसमी आपदाओं की संख्या भी बढ़ सकती है। विश्व मौसम संगठन के मुताबिक पिछले महीने ही अल नीनो की शुरुआत हो चुकी है।
प्रशांत महासागर में अधिक तापमान के साथ शुरू होने वाला यह प्रभाव अक्सर नौ से 12 महीने तक रहता है। साल के आखिर में इसका असर सबसे ज्यादा होने की संभावना है। वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि पहले ही ग्लोबल वॉर्मिंग से जूझ रही दुनिया में अल नीनो का असर अधिक घातक हो सकता है। मसलन इसकी वजह से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां भी फैल सकती हैं। पहले भी जब अल नीनो प्रभाव आया तो पानी से पैदा होने वाली बीमारियों और अन्य संक्रामक रोगों के प्रसार में वृद्धि देखी गई थी। अल नीनो के कारण बारिश की मात्रा और बारंबारता बढ़ जाती है, जिससे पानी जमा होता है। इस कारण मच्छर आदि अधिक तापमान में पैदा होने वाले जीव बढ़ जाते हैं और संक्रामक रोग फैलते हैं।
1998 में जब अल नीनो आया था तो कई जगह मलेरिया महामारी बन गया था। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि अल नीनो के कारण जंगल की आग जैसी घटनाओं में कितनी वृद्धि होती है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह खतरा भी बढ़ जाता है। एक अनुमान के मुताबिक पिछली गर्मियों में सिर्फ यूरोप में गर्मी से 61 हजार लोगों की जान गई थी, जबकि तब अल नीनो प्रभाव नहीं था। इस साल जुलाई को इतिहास में अब तक का सबसे गर्म महीना आंका गया है। देखा गया है कि जिस साल अल नीनो सक्रिय होता है, उस साल दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे इलाकों के कई देशों में खराब फसल होने की आशंका ज्यादा होती है। इसका असर खाद्य के अभाव और महंगाई के रूप में सामने आता है। यह खतरा फिलहाल मंडरा रहा है।