माई भारत टाईम्स । धरती पर रहने के लिये सभी के साथ संतुलन बरकरार रखना होता है। सबसे ज्यादा मनुष्य और प्रकृति के बीच का संतुलन बरकरार रहना चाहिये, अन्यथा समस्त संसार पर आपदा आ सकती है। यदि इंसान अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये पर्यावरण और प्रकृति को नुकसान पहुॅचाता है, तो इसका खामियाजा समस्त प्राणियों को झेलना पड़ता है, जिससे कई जीव-जन्तुओं का समूल विनाश भी हो जाता है, इसलिये धरती से विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने का सही तरीका है कि हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं बल्कि उसे अपनी धरोहर समझकर उसकी रक्षा करें। एक समय था जब इंसान और प्रकृति के बीच अच्छा तालमेल था और इंसान प्रकृति का संरक्षक बनकर रहता था। लेकिन आज के दौर में इंसान अपने स्वार्थ व लोभ के वशीभूत होकर सबकुछ भूल चुका है। आज इंसान अपने लिये जीता है, वह यह नहीं सोच पाता है कि यदि विकास की इस अंधी दौड़ में वह धरती अर्थात प्रकृति को नुकसान पहुँचाता है, तो प्रकृति भी एक न एक दिन अपना बदला अवश्य लेगी। आज के दौर में वही सबकुछ दिख रहा है। प्रकृति ने अलग-अलग रूपों में तांडव करना शुरू कर दिया है। कभी बाढ़ तो कभी भूकंप के झटके, कभी वायु चक्रवात तो फिर कभी भयंकर आंधी से प्रकृति अपना बदला ले रही है। आज से लगभग पचास साल पहले बहुत कम मिलता था कि कहीं पर बादल फटा या भूकंप से बहुत नुकसान हुआ, लेकिन आज के समय में यह आम बात हो गई है। पिछले कई सालों से उत्तराखण्ड राज्य में भी इस तरह की आपदायें देखने को मिल रही है। प्रकृति के साथ इंसान ने अनावश्यक रूप से छेडछाड़ करनी शुरू कर दी है , जिसके कारण प्रकृति ने भी अपना रौद्र रूप इंसानों को दिखाना शुरू कर दिया हें प्रकृति के प्रकोप के कारण आये दिन कई लोगों को मरना पड़ता है। आज के दौर में हम इंसान अपने स्वार्थ के लिये जंगलों को काट रहे हैं, वहाॅ से सड़कों का निर्माण कर रहे है, जिसके लिये धरती का कटान होता है और जिस स्थान से धरती का कटान होता है वहाॅ से धरती कमजोर हो जाती है और धरती के कमजोर होने से भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा पेड़ों के कटान से कई तरह के पशु-पक्षियों का भी नुकसान होता है, जो उस जंगल में रहते हैं।
वृक्षारोपण करें प्रकृति व स्वयं तथा अन्य जीवों को बचायें
पेड़ों के कटान से हम इंसानों को भी भारी नुकसान होता है, जहाॅ पर पेड़ कम होते हैं, उस क्षेत्र में बारिश बहुत कम होती है, और जब बारिश कम होगी तो अपने-आप ही इसका नुकसान इंसान को होगा। जीवन में सुखी व आने वाली पीढ़ी को सुखी रखना है तो ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगायें तथा अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें। बारिश के बिना पहाड़ों में खेती नहीं हो पाती है और जब खेती नहीं होगी तो इंसान खायेगा क्या और यह खेती सिर्फ किसान अपने लिये नहीं बल्कि पूरे देश का पेट भरने के लिये करता है। जो किसान पूरे देश का पेट भरता है, हम एक तरह से उसका नुकसान ही कर रहे होते हैं। ऐसे में यदि हम किसान को ही नुकसान पहुँचायेंगे तो उससे हमारा भी नुकसान होगा, खाने-पीने के लिये दूसरों के सहारे रहना पड़ेगा। इंसानों द्वारा प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने से क्या नुकसान हो सकता है, इसके लिये वैज्ञानिकों द्वारा हमें बार-बार बताकर सचेत किया जाता है, लेकिन हम फिर भी समझ नहीं पाते हैं, इसका का बड़ा खामियाजा हम उत्तराखण्ड के लोगों ने 2013 के जल प्रलय के रूप में देखा जिससे हजारों लोगों की मौत हो गयी थी। जब वैज्ञानिक हमें बार-बार आगाह करते हैं, कि यदि हम प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करते हैं तो इससे हमारे पहाड़ों की शांत वादियों को भारी नुकसान पड़ सकता है, और होता भी वही है, उसके बावजूद भी हमारे अंदर परिवर्तन नहीं आ रहा है। धरती पर पर्यावरण के साथ भी लगातार खिलवाड़ किया जा रहा, पेड़-पौधों को नुकसान पहुॅचाया जा है, जिसके कारण तापमान बढ़ता ही जा रहा है, जो चिंता का विषय बनता ही जा रहा है । जब-जब मानव द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की गयी है, प्राकृतिक असंतुल की स्थिति पैदा हुई है। इससे मानवीय विपदायें शुरू हो जाती है। मौसम का मिजाज बदल जाता है, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से ग्लैशियर घटते जा रहे हैं, जिसके कारण भयंकर त्रासदी हमारे साथ-साथ अन्य जीव-जंतुओं को भी झेलनी पड़ती है। प्रकृति के साथ मानव द्वारा अपने हित के लिये किया जाने वाला स्वार्थ खुद हमारे लिये ही नुकसानदायक होता है, यह जानने के बाद भी हम लोग अनजान बने रहते हैं। जिस प्रकार से हमारे पूर्वजों के द्वारा प्रकृति को संभालकर रखा गया था, उसे हमने बहुत नुकसान पहुॅचा दिया है, इससे हमारी आने वाली पीढ़ी को इसका नुकसान झेलना पड़ेगा। हमें अपने पूर्वजों का उपकार जो हमारे ऊपर उन्होंने किया था, उसे भूलना नहीं चाहिये। यदि हम अपने पूर्वजों के मार्ग पर चलेंगे तो आने वाली पीढ़ी को भी सही जीवन दे पायेंगे, अन्यथा आने वाली पीढ़ी को जीवन जीना मुश्किल हो जायेगा। आज मनुष्य के स्वार्थ के चलते कई जीव-जन्तुओं की प्रजातियाँ समाप्त हो चुकी है, खोजने से भी नहीं मिल पाती है। हमें किसी भी प्रकार का विकास करने से पहले यह सोच लेना चाहिये कि इससे हमारी प्रकृति को कितना नुकसान होगा। यदि नुकसान होगा तो उसका हमारी आने वाली पीढ़ी को क्या नुकसान हो सकता है ? हमारे जीवन में इसका क्या असर पड़ेगा ? कुछ लोगों के स्वार्थ के कारण अनेकों निर्दोष लोगों को भी इसका खामियाजा झेलना पड़ता है। यह सब सोच-विचार करने के बाद ही किसी भी प्रकार के विकास को आगे बढ़ाना ही समझदारी होगी। यदि बिना सोचे-समझे किसी कार्य को किया जाता है तो उसका अंजाम बुरा ही होता है, हमारे साथ-साथ जंगल के प्राणियों को भी इसका खामियाजा झेलना पड़ता है। इसलिये हमें यदि प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो पर्यावरण को संतुलित करना होगा, अन्यथा यह हमारे जीवन के लिये ही नुकसानदायक हो सकता है। प्रकृति और मानव का बहुत पुराना सम्बन्ध है, इस सम्बन्ध को कायम रखने के लिए हमें एक बार फिर से अपने पूर्वजों के मार्ग पर चलकर प्रकृति को विनाश की ओर जाने से रोकना होगा, यदि हम ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो कुछ हद तक हम अपने आने वाली पीढ़ी को उज्जवल और अच्छा जीवन देने का कार्य कर रहें हैं और ऐसा करने से हमारे देश की धरोहर भी बच जाएगी और हमारी आने वाली पीढ़ी भी एक अच्छी जिंदगी जी पाएंगे।