MY BHARAT TIMES, GAIRSAIND/SILANGA. यह एक कहानी है कुमाऊँ और गढ़वाल के मध्य में बसे गैरसैंण के सिलंगा गाँव के हरेंद्र शाह की जिन्होंने अपनी मेहनत से एक नया आयाम लिखा, हरेंद्र शाह का सपना था कि वह अपने पहाड़ की बंजर खेती को उपजाऊ बनाए और पहाड़ में ही रोजगार के अवसरों का सृजन करके दूसरे युवाओं को भी रोजगार मुहैया करवाये। ये बात हरेन्द्र को पिछले पाँच सालों से रातभर सोने नहीं देती थी। हरेन्द्र शाह का यह सपना अब धरातल में हकीकत में पूरा हो चुका है। हरेन्द्र नें बंजर खेतों को इस कदर उपजाऊ बनाया कि आज ये खेत सोना उगल रहा है। आज हरेन्द्र शाह का ‘वोकल फॉर लोकल माॅडल’ लाखो युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। सिलंगा गाँव के बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले हरेन्द्र शाह ने बीएससी (PCM) की डिग्री देहरादून के डीएवी कॉलेज से पूरी की। डिग्री प्राप्त करने के बाद हरेन्द्र के पास अपने सुनहरे भविष्य के लिए बहुत सारे विकल्प थे। वो चाहते तो कहीं अच्छी नौकरी का प्रयास कर सकते थे, लेकिन हरेन्द्र का सपना था अपने पहाड़ में रहकर ही कुछ बडा करना है और लोगो के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत करना है। अपने सपने को सच करने के लिए हरेन्द्र नें सब्जी उत्पादन की ठानी। अपने गाँव सिलंगा में खिल नामक स्थान पर बंजर पडी 10 नाली भूमि पर दो पाॅली हाउस लगाये और बंजर भूमि को उपजाऊ योग्य बनाने में दिन रात एक कर दिया। इसमें हरेन्द्र के परिवार नें भरपूर साथ दिया। हरेन्द्र के परिवार में उनके माँ पिताजी के अलावा तीन बहिनें हैं जिनमें से एक की शादी हो चुकी है। आखिरकार हरेन्द्र की जिद और मेहनत रंग लाई और उसका फल आज हरेंद्र को आख़िरकार प्राप्त हो गया। आज उस भूमि पर लगभग हर प्रकार की सब्जी का उत्पादन किया जा रहा है । गोबी, शिमला मिर्च, मूली, मटर, ककडी, खीरा, बैंगन, फ्रासबीन, टमाटर, प्याज,से लेकर हर वो सब्जी उगाई जो आपको सब्जी मंडी में दिखाई देती है। जानकारी के अनुसार हरेंद्र शाह ने एक साल पहले अपने काम को शुरू करने के लिए 3 लाख रूपये लगाए और आज इसी तीन लाख लगाने से उनके द्वारा अपने परिवार के आलावा अन्य 4-5 लोगों को रोजगार भी दिया जा रहा है। उनका कहना है की उनकी सब्जी की मांग बहुत होती है लेकिन अभी वह सिर्फ मेहलचौरी बाजार में ही लोगों की जरुरत की सब्जी पूरी कर पा रहे हैं, हरेंद्र शाह ने जैविक खेती पर ज्यादा जोर दिया है, इसलिए इस समय उनकी सब्जियों की मांग भी ज्यादा है। उन्होंने बताया की अभी और आगे भी वह सब्जी के अलावा डेरी,मशरूम,कीवी आदि का उत्पादन कर और भी लोगों को रोजगार देंगे। उन्होंने बताया की उनका बचपन का सपना था की वह कुछ अलग करें। कोरोना वाइरस के वैश्विक संकट में रोजगार के अवसर सीमित हो गयें हैं ऐसे में युवाओं को इस अवसर को भुना करके अपनी माटी पर भरोसा करना चाहिए। यही माटी बहुत कुछ दे सकती है, इसके लिए सभी को आगे आना होगा और सरकार को भी ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, ताकि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आ सके। यदि ऐसा होता है तो पहाड़ों से पलायन भी रुकेगा और इसका फायदा सीधे-सीधे तौर पर उत्तराखंड को ही होगा। वर्तमान दौर में वीरान पहाडों के लिए हरेन्द्र का ये माॅडल कारगर साबित हो सकता है। हरेन्द्र का ये प्रयास अनुकरणीय है। युवाओं को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। हरेन्द्र शाह को हमारी ओर से वोकल फाॅर लोकल माॅडल के जरिए रोजगार सृजन की उम्मीदों को एक बार फिर से सभी लोगों के दिलों में पहाड़ की भूमि की अहमियतता को दर्शाने के लिए बहुत-बहुत शुभकामनायें। यदि हम जीवन में चाहें तो कुछ भी असंभव नहीं हो सकता, यह बात हरेंद्र शाह ने हम सबको समझायी है। पहाड़ के प्रत्येक युवा को इसी पग पर आगे बढ़ते हुए अपनी जन्मभूमि में ही स्वरोजगार की पहल को आगे बढ़ाना चाहिए। पहाड़ के प्रत्येक व्यक्ति को इनसे कुछ सीख लेने की आवश्यकता है ताकि हम लोग जो भी अपने गाँव को छोड़कर शहरों में चले गए और गाँव की भूमि को बंजर होने के लिए छोड़ दिया,उसे एक बार फिर से आबाद कर सकें और अपने साथ-साथ कुछ अन्य लोगों को भी पहाड़ों में ही रोजगार दे सकें।