बेटियों का जीवन एक वृक्ष के समान है, बेटियों को भी समाज में सम्मान देना अति आवश्यक

मनुष्य जीवन में बेटी का एक विशेष स्थान होता है, जीवन में बेटी को भी बेटे के समान अधिकार अवश्य मिलना चाहिए। एक समय था जब बेटियों को पर्दे में रखा जाता था, लेकिन अब समय बदल चुका है, बेटियों को भी समाज में समानता के अधिकार प्राप्त हैं। जो अधिकार एक बेटे को वहीं समान अधिकार एक बेटी को भी प्राप्त हैं। देश की बेटियों की रक्षा और उन्नति के लिये प्रधानमंत्री और अन्य संगठनों ने बेटियों को सशक्त बनाने का प्रयास किया है और प्रधानमंत्री द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं’ नाम से एक योजना भी चलाई गई है। जिसके तहत देशभर में महिलाओं और बेटियों को सशक्त बनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री द्वारा यह योजना भारतीय समाज में छोटी बच्चियों के खिलाफ भेदभाव और लैंगिक असमानता की ओर ध्यान दिलाने के लिये चलाई गई है तथा समाज में सभी को बेटियों और महिलाओं का महत्व समझाने के लिये इस योजना का पूरे देश में प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। 22 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा इस योजना की शुरूवात की गई। इस योजना के तहत लोगों को बेटियों का महत्व समझाया जाता है और कन्याभ्रूूण हत्या का विरोध भी किया जाता है तथा सभी को यह याद दिलाया जाता है कि समाज में बेटियों का अधिकार भी उतना ही होता है, जितना कि एक बेटे का। कन्याभ्रूूण हत्या को पूरी तरह से समाप्त करने तथा बेटियों के जीवन को बचाने के लिये आम लोगों के बीच जागरूकता फैलाने का काम इस योजना के तहत किया जा रहा है। इस अभियान के माध्यम से लोगों को समझाया जाता है कि लड़के की भांति ही एक लड़की के जन्म पर भी ख़ुशी मनानी चाहिये ताकि दानों में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। मनुष्य जीवन में यदि बेटी न हुई तो जीवन में माता का दर्जा किसे दिया जायेगा, एक बहिन का प्यार व एक पत्नी का साथ भी प्राप्त नहीं हो सकता है। जीवन में अकेले ही जीना पड़ेगा और जीवन नीरस हो जायेगा। बेटी एक पौधे की भांति है जब वह छोटी होती है तो अपने माता-पिता के घर में रहती है और बड़े होने पर ससुराल चली जाती है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक पौधा जब तक छोटा होता है, तो उसे माली पौधशाला में रखता है और बड़े होने पर वह उसे बगीचे में लगा देता है। माता-पिता भी माली की तरह अपने बेटी को पालते है जिस प्रकार माली पौधे की देख-रेख करता है, ठीक उसी प्रकार माता-पिता भी बेटी की देख-रेख (पालन) करते हैं। एक समझदार माली पौधे के लिये अच्छी सी जगह देखकर ही लगाता है ताकि वह सूख न जायें। दूसरा माली जो कि पौधे को बिना सोचे-समझे लगा देता है वह यह नहीं सोचता कि यहाँ इसे पानी खाद मिलेगी भी कि नहीं, कहीं यह सूख तो नहीं जायेगा। इस विषय पर वह नहीं सोचता कहता है कि पौधा लगाना ही तो है, इसमें जगह क्या देखानी और सोचना कैसा। उसी प्रकार समझदार माता-पिता अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोच-समझकर फैसले लेते हैं, वह अपनी बेटी की शादी के लिये एक अच्छा परिवार , अच्छा जीवनसाथी जो कि उसे भविष्य में सुखी रखे वह ऐसा देखते हैं और पूर्णरूप से संतुष्ट होने पर ही अपनी बेटी की शादी करते हैं। दूसरी ओर वह माता-पिता जो कि बेटी को पराया समझते है और ऐसी सोच रखते है कि बेटी की शादी जल्दी कर देनी चाहिये नहीं तो वह बोझ बन जाती है और उसकी शादी बिना सोचे-समझे कि वह भविष्य में सुखी रहेगी या नहीं , वह उसकी शादी कर देते हैं। समझदार माली द्वारा लगाये गये पौधे को देखो आज वह हरा-भरा है उसे देखकर लगता है कि मानो वह ख़ुशी से झूमकर कह रहा हो कि मैं कितना खुश हूँ मुझे देखो और माली आज भी उसे देखने व उसका ख्याल रखने जाता है और दूसरा माली जो समझता है कि पौधा लगाना ही तो था सो लगा दिया अब क्या उम्रभर उसकी देख-रेख करनी पड़ेगी। उसका लगाया हुआ पौधा हरा तो है परन्तु भरा नहीं उसे देखकर लगता है कि मानो वह शोक में डूबा हुआ हो उसका हृदय बहुत दुखी हो। जिन माता-पिता ने अपनी बेटी का विवाह सोच-समझकर किया आज वह आनंदित जीवन जी रही है वह बेटी उसी वृक्ष की भांति दिख रही है जो झूम रहा था, आनंदित हो रहा था और माता-पिता उसका आज भी ध्यान रखते हैं। दूसरी ओर वह बेटी जो बिना सोचे-समझे ब्याही (शादी) गयी थी, वह उस वृक्ष की भांति हो गयी है जो कि हरा तो है पर भरा नहीं अर्थात अत्यंत निर्बल और उसके माता-पिता सोचते हैं कि बेटी के विवाह के बाद हमारी जिम्मेदारी खत्म हो गयी है। माता-पिता को एक अच्छे समझदार माली की भांति होना चाहिये, जो पौधे के वृक्ष बन जाने व दूसरी जगह लगाने पर भी अपने कर्तव्य का पालन करता है। माता-पिता को भी बेटी के हर सुख-दुख में साथ देना चाहिये। यह नहीं सोचना चाहिये कि बेटी के प्रति जिम्मेदारी खत्म हो गयी है बल्कि जिम्मेदारी बढ़ गयी है। बेटी को यह नहीं बोलना चाहिये कि तेरे घर की बात है हम नहीं बोल सकते, जिस प्रकार बेटे के हर सुख-दुख में साथ देते हो बेटी का भी देना चाहिये। जिस दिन हर माता-पिता यह संकल्प लेंगे कि हम बेटी का साथ हमेशा देंगे उस दिन कोई बेटी निर्बल (अबला) नहीं होगी। जीवन में यदि हम एक बेटी को समानता का अधिकार देते हैं, सारी बेटियों को बेटे के समान ही मानते हैं, तो हमें सभी को मिलकर बेटियों की रक्षा के लिये कदम उठाने की आवश्यकता है और समाज में फैल रही महिलाओं और बेटियों के लिये गलत मानसिकता को समाप्त करना होगा। आज यदि हमें अपने देश का भविष्य संभालने का प्रयास करना है तो हमें गर्भ में ही कभी भी लड़की को नहीं मारना चाहिये। उनकी हमेशा रक्षा करनी चाहिये ताकि हमारा देश आगे चलकर खुशहाल रह सके, कोई भी माता के प्यार से वंचित न हो, बहिन व पत्नी का प्यार भी एक भाई व पति को हमेशा मिलता रहे। इसलिये बेटियों की हमेशा रक्षा करनी चाहिये। यदि हमारे जीवन में हमें इन सभी की आवश्यकता है तो कभी भी कन्या भू्रणहत्या न करें और न ही करने दें। आज हमारे देश की बेटियों ने हर तरफ नाम कमाया हुआ है सभी जगहों पर लड़कों से आगे बढ़ गई हैं। इसलिये यदि हर घर में कन्या का वास होगा तो देश का भविष्य भी सुधर जायेगा तथा समाज में फैल रही कुरीतियों पर भी अंकुश लग जायेगा। इसलिये हमेशा बेटी को धरती पर जन्म लेने देने चाहिये और उनको भी एक लड़के के समान अधिकार देने चाहिये उन्हें किसी भी प्रकार की सुविधाओं से वंचित नही रखना चाहिये ताकि महिलायें सशक्त हो सकें, आज हमारे देश में यह देखा भी जा रहा है कि महिलाओं को समानता का अधिकार मिल गया है और देश की बेटियों ने देश-विदेश में भारत का नाम भी रोशन किया है। हमारे जीवन में महिलाओं का विशेष स्थान होता है, जीवनभर का साथ देने के साथ-साथ हमारे अपनों का भी सुख-दुख में ध्यान हमारे घर की महिलायें रखती हैं, इसलिये जीवन में महिलाओं को हमेशा सम्मान देना चाहिये और उन्हें समाज में उच्च स्थान तक पहुॅचाने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिये हमेशा प्रयासरत रहना चाहिये, यह हम सभी का कर्तव्य है कि हम समाज में किसी के साथ कभी भी भेदभाव न करें, सभी को समान रूप से देखें और सभी के साथ समान व्यवहार करें तभी देश का विकास होगा और देश व समाज में आने वाली किसी भी विपदा या बड़े से बड़े संकट से हम एक साथ लड़ सकते हैं। यदि पुरूष और महिलायें तथा समाज व देश का हर एक नागरिक एकजुट हो जाये तो कोई भी कार्य बड़ा नहीं होता है, बडी ही आसानी से कार्य सफल हो जाता है। इसिलये हमेशा महिलाओं को सशक्त बनाये और अपने कंधों से कंधा मिलाकर उन्हें भी चलने दें तभी देश व समाज का विकास होगा और हर एक परिवार खुशहाल होगा। हमेशा ध्यान रखना होगा कि बेटियाँ हमारे जीवन में एक वृक्ष के समान हैं, उसे कभी भी सूखने न दें, सदा उसकी देख-रेख करें और खुशहाल रहें।

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