दुनिया की सबसे लम्बी ‘अटल टनल’ बनकर तैयार, प्रधानमंत्री सितम्बर अंत तक कर सकते हैं उद्घाटन

MY BHARAT TIMES, दुनिया की सबसे लम्बी और 10 हजार फ़ीट से भी ज्यादा ऊँचाई पर देश में ‘अटल टनल’ आख़िरकार लगभग 10 साल में बनकर तैयार हो चुकी है, जिसका उद्घाटन अगले महीने सितम्बर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा किया जायेगा। इसे बनाने की शुरूआत 28 जून 2010 को हुई थी, इसे बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (BRO) ने बनाया है। यह सुरंग घोड़े के नाल के आकार में बनाई गई है, इस टनल की लम्बाई लगभग 9 किलोमीटर है और अब इसके बनने के बाद मनाली से लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो चुकी है। इस टनल के बनने से अब पूरे सालभर लद्दाख मुख्य मार्ग से जुड़ा रहेगा। इस टनल का नाम पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार नाली-लेह रोड पर चार और टनल प्रस्तावित हैं, फिलहाल ये टनल बनकर पूरी हो चुकी है, ऐसा माना जा रहा है कि सितंबर के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसका उद्घाटन किया जायेगा। यह टनल सिर्फ मनाली को लेह से नहीं जोड़ेगी बल्कि हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पिति में भी यातायात को आसान कर देगी, यह कुल्लू जिले के मनाली से लाहौ़ल-स्पिति जिले को भी जोड़ेगी। इस टनल के बनने से लद्दाख में तैनात भारतीय फौजियों को सबसे ज्यादा फायदा होगा, इस टनल के माध्यम से सर्दियों में भी भारतीय फ़ौज तक हथियार और रसल पहुँचाया जा सकता है।

इस टनल के अंदर कोई भी वाहन अधिकतम 80 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चल सकेगा। यह टनल इस तरीके से बनाई गई है कि इसके अंदर एक बार में 3000 कारें या 1500 ट्रक एकसाथ निकल सकते हैं। इसे बनाने में करीब 4 हजार करोड़ रुपये की लागत आई है। टनल के अंदर अत्याधुनिक ऑस्ट्रेलियन टनलिंग मेथड का उपयोग किया गया है। वेंटिलेशन सिस्टम भी ऑस्ट्रेलियाई तकनीक पर आधारित है। यहाँ पर सर्दियों में अत्यधिक सर्दी होने के कारण BRO के इंजीनियरों और कर्मचारियों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। इस टनल की डिजाइन बनाने में DRDO ने भी मदद की है ताकि बर्फ और हिमस्खलन से इस पर कोई असर न पड़े, यहाँ यातायात किसी भी मौसम में बाधित न हो, इस टनल के अंदर निश्चित दूरी पर सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे जो स्पीड और हादसों पर नियंत्रण रखने में मदद करेंगे। टनल के अंदर हर 200 मीटर की दूरी पर एक फायर हाइड्रेंट की व्यवस्था की गई है, ताकि आग लगने की स्थिति में नियंत्रण पाया जा सके।

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