‘जब से बदरा जल बरसाए’ गीत के माध्यम से बारिश के मौसम का अद्भुत वर्णन

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चैतन्य तरुण हो गयी धरा, जब से मेघा जल बरसाए ।
कोयल ने राग विरह छोड़ा, मल्हार राग फिर दुहराए ।।
धरती ने मैल क्षरण करके, देखो नव यौवन पाया है ।
जगती की भूख मिटाने को, आकाश अमृत बरसाया है ।
हरियाली है सब हरा भरा, ऊपर से मेघ दूत आए ।।1
झीनी झीनी सी बौछारें, हम सबको जीवन देती हैं ।
धरती का ताप समन करके, संकट जन का हर लेती हैं ।
अवनी की कोख हरी करने, मेघा आये मेघा आए ।।2
बंजर के मंजर टूटेंगे, धरती से अंकुर फूटेंगे ।
सब ताल तलैया गांवों के, मनचाहा पानी लूटेंगे ।
तितली उपवन में नाचेगी, नव रंग पंखुरी फैलाए ।।3
संकेत दे रहे हैं बदरा, गुस्सा भी अपना दिखा रहे ।
मनचाहे दोहन से बचना, मानस को संयम सिखा रहे ।
क्रोधित हो जब फटते मेघा, घर बार मवेसी घबराए ।।4
गिरिराज हिमालय से निकलीं, निर्झरणी कैसे नाच रहीं ।
देवों से लिए हुए व्रत को, अपनी लहरों से बांच रहीं ।
मदमस्त उफनती धारों से, तटबंध किनारे सरमाए ।।5
                                                                 
                                                               सौजन्य : – जसवीर सिंह हलधर 

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