नेत्रदान-महादान : जीवन में नेत्रदान कर बनें महापुण्य के भागी

मनुष्य जीवन में वैसे तो कई प्रकार के दानों का अलग-अलग महत्व होता है, लेकिन सबसे ज्यादा महत्व ‘नेत्रदान’ का माना गया है। ‘नेत्रदान’ एक ऐसा दान है, जिससे इंसान के अंधियारे जीवन में उजाले की रोशनी जाग जाती है। एक मनुष्य के अंधकारमय जीवन में ख़ुशियाँ लौट आती हैं, लेकिन भारतवर्ष में अभी ‘नेत्रदान’ बहुत कम लोग करते हैं। हालांकि अब कुछ हद तक लोग इसकी महत्वता को समझने लगे हैं, और ‘नेत्रदान’ का ग्राफ भी धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है। आँखें भगवान द्वारा दी गयी सभी प्राणियों के लिये एक उपहार है, जिस उपहार से हमारे जीवन में खुशियाँ और प्रकाश हमेशा बना रहता है। आँखों के माध्यम से हम इस खूबसूरत दुनिया के नजारे का आनंद ले सकते हैं। आँखों के द्वारा संसार की इस खूबसूरती को निहारा जाता है, आँखें प्रकाश की किरणों के माध्यम से हमारे मस्तिष्क द्वारा संचालित होती हैं, इसीलिये इसे प्रकाशीय अथवा चक्षु उपकरण भी कहते हैं। दुनिया की प्रत्येक वस्तु हमें आँखों के द्वारा ही दिखाई देती है। आँखों के बिना जीवन नीरस व रंगहीन हो जाता है, हमारे आस-पास की हर वस्तु में अलग ही सुंदरता छिपी होती है जिसे देखने के लिये एक अलग नजर की जरूरत होती है। आँखों का महत्व हमारे जीवन में कितना ज्यादा है यह हम सब समझते हैं, इसीलिये इनकी सुरक्षा के लिये हमें हर सम्भव सावधानियाँ बरतनी चाहिये। आँखों की ठीक प्रकार से देखभाल करने के लिये संतुलित भोजन खाने की आवष्यकता होती है, संतुलित भोजन में हरी सब्जियाँ, अंडे, फल, गाजर आदि का प्रयोग अधिक होना चाहिये, जिससे आँखों की रोशनी तेज बनी रहे। धूम्रपान के सेवन से हमेशा दूर रहने की आवश्यकता है, सूर्य कीरोशनी को सीधे तौर पर आँखों पर नहीं पड़ने देना चाहिये। ज्यादा समय तक कंप्यूटर व मोबाइल पर काम न करें, आँखों को शुद्ध पानी से धोयें, टेलीविजन देखते या कंप्यूटर पर काम करते हुये चमक-रोधी चश्मे का इस्तेमाल करें। कम रोशनी में पढ़ाई कभी भी न करें, जिससे आँखों पर जोर पड़ सकता है। आँखों की नियमित जाँच करायें, नजदीक से एवं लेटकर टेलीविजन न देखें। बिना आँखों के आनन्दमय जीवन की कल्पना करना असम्भव है, एक-दूसरे के दुःख-सुख, भावनाओं व इस दुनियाँ की वास्तविकता को समझ पाने के लिये आँखों का होना कितना आवश्यक है, इस बात को प्रत्येक इंसान के साथ-साथ प्रत्येक प्राणी जानता है, इंसान के साथ-साथ प्रत्येक प्राणी को आँखों की अति आवश्यकता होती है। लेकिन जो इंसान भगवान द्वारा दिये गये इस उपहार से वंचित होता है, वह हमसे ज्यादा अपने अन्तर्मन से महसूस करता है। नेत्रहीन व्यक्ति के लिये तो यह संसार प्रकाशहीन होता है और वह अंधेरी दुनियाँ में रहकर अंधकारमय जीवन जीने के लिये विवेश होता है। सोचने वाली बात यह है कि यदि हम ऐसे लोगों के जीवन में कुछ प्रकाश के पल दे सकें तो यह हमारे जीवन का सबसे बड़ा पुण्य बन सकता है। यदि नेत्रहीन व्यक्ति को नेत्र मिल जाये तो वह इस खूबसूरत संसार को देखने लगेगा और आम इंसान की भांति जीवन जी पायेगा। यदि हम यह सोच अपने मन में जागृत कर लें तो जीवन में करूणा का वास हो जायेगा और हमारे अन्तर्मन में भी ‘नेत्रदान’ करने की एक अद्भुत इच्छा जागृत होगी। इस संसार में नेत्रहीनों की संख्या काफी अधिक है जिनमें से कई तो जन्मजात ही नेत्रहीन होते हैं, और कुछ लोगों को किसी बीमारी के कारण अपनी आँखों की रोशनी गंवानी पड़ती है। हमारे दिल व दिमाग में हमेशा यह विचार आना जरूरी होता है कि यदि हम अपने ‘नेत्रदान’ देकर किसी भी नेत्रहीन व्यक्ति के जीवन में प्रकाश फैला देते हैं, तो हम बहुत बड़ा पुण्य का कार्य करते हैं। हमें हमेशा यह सोचकर चलने की आवश्यकता होगी कि जीवन में किसी को भी यह दुःख प्राप्त न हो कि उसने इस संसार के सुंदर दर्शन नहीं कर पाये, लेकिन हमारी कोशिश होनी चाहिये कि हम अपने स्तर पर जो कर सकते हैं, वह अवश्य करें, जीवन जीने के उपरान्त अपनी आँखों को किसी के लिये भी ‘नेत्रदान’ कर पुण्य के भागी बनें। ‘नेत्रदान’ महादान होता है, व्यक्ति के मरणोपरान्त उसकी आँखें दान की जा सकती हैं, जिससे वह ऐसे व्यक्ति को रोशनी दे सकता है, जिसने संसार की इस सुंदरता को निहारा न हो, जो अंधकारमय जीवन जी रहा हो। भगवान द्वारा दिया गया इस जिंदगी में आँखों का विशेष उपहार होता है और इस उपहार के द्वारा भगवान ने हमें न सिर्फ रोशनी प्रदान की है, बल्कि हम अपने मरणोपरान्त किसी दूसरे व्यक्ति को भी जीवनदान दे सकते हैं, अर्थात किसी नेत्रहीन के जीवन में प्रकाश का उत्सर्जन कर सकते हैं। जीवन में हमेशा हमें किसी भी प्रकार के अंधविश्वास से ऊपर उठकर सोचना चाहिये, औरहमेशा खुद को ‘नेत्रदान’ के लिये तत्पर रखना चाहिये और हमें अपने अलावा अन्य लोगों को भी ‘नेत्रदान’ करने की सलाह देनी चाहिये। ‘नेत्रदान’ का महत्व हमें तब समझ आता है, जब हम किसी नेत्रहीन व्यक्ति को मार्ग पर ठोकरें खाते हुये देखते हैं, वह व्यक्ति अपने घर में भी सही से नहीं चल सकता है, नेत्रहीन व्यक्ति को हर समय किसी न किसी व्यक्ति का सहारा लेना अति आवश्यक होता है, अन्यथा उसे अपने किसी भी कार्य को करने में असुविधा होती है। जीवन में यदि हमें महापुण्य कमाना है तो हमें ‘नेत्रदान’ करना चाहिये। ‘नेत्रदान’ करना बहुत आसान होता है, इसके लिये हमारे मन में सिर्फ सद्भावना होनी चाहिये। हमें यदि ‘नेत्रदान’ करना हो तो हमें जीवन रहते इसकी सूचना लिखित रूप से किसी भी नेत्र बैंक में देनी आवश्यक होती है। यदि हम किसी भी नेत्र बैंक में लिखित में जानकारी न दें और सिर्फ मुँह से बोल दे तो कोई भी चिकित्सक हमारे नेत्र किसी भी दूसरे इंसान को नहीं दे सकता है, उसके लिये लिखित में देना आवश्यक होता है, जिससे मरणोपरान्त 6 घंटों के अंदर हमारे नेत्रों का दान किया जा सकता है और किसी ऐसे इंसान को प्रकाश दिया जा सकता है, जिसके जीवन में अंधकार के अलावा और कुछ न हो । ‘नेत्रदान’ करने के लिये किसी भी धर्म अथवा जाति को नहीं देखा जाता है, यह दान सभी लोग कर सकते हैं। सभी धर्मों में दया, परोपकार, जैसी मानवीय भावनायें अवश्य सिखाई जाती हैं। यदि हम अपने ‘नेत्रदान’ करके मरणोपरान्त किसी की बिना स्वार्थ के सहायता कर पाते हैं तो हम अपने धर्म का पालन करते हैं और यदि हम इसे बिना स्वार्थ के करते हैं, तो यह ‘नेत्रदान’ ‘महादान’ बन जाता है, इससे बड़ा दान और कुछ भी नहीं हो सकता है, इसलिये हमेशा मनुष्य को इस धरती पर रहने वाले उन इंसानों के बारे मे सोचना अवश्य चाहिये जो कि जीवन में अंधकार के अलावा और कुछ देख ही नहीं पाते हैं, ऐसे लोगों के जीवन में निःस्वार्थ भाव से प्रकाश फैलाने का प्रयास करना चाहिये। वैसे तो इंसान यदि सम्पूर्ण शरीर भी दान दे देता है तो उसका लाभ य सिर्फ एक व्यक्ति को होगा बल्कि कई लोगों को लाभ हो सकता है, लेकिन शरीर के ज्यादातर अंग अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाते हैं लेकिन आँखों को 6 घंटे तक के अंतराल में भी बदला जा सकता है। इसलिये हो सकता हो तो नेत्रदान करने पर अवश्य विचार करें।

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