MY BHARAT TIMES, DEHRADUN. अंतर्राष्ट्रीय नर्सेज दिवस पर उत्तराखंड सरकार ने उपचारिका व सिस्टर के पदनाम को क्रमशः नर्सिंग अधिकारी व वरिष्ठ नर्सिंग अधिकारी किए जाने की घोषणा की है। डॉक्टरों के साथ नर्सें कोरोना से लड़ने में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। आप निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा व जीवन बचाने के पुण्य कार्य में दिनरात जुटे रहते हैं। आप सभी कोरोना वॉरियर्स को नमन। इस समय पुरे विश्व में कोरोना महामारी ने भयंकर रूप लिया हुवा है, इस महामारी से जो दिन-रात हम सभी की सुरक्षा में जुटे कोरोना वॉरियर हैं, उनमें नर्सेज का भी विशेष स्थान है। कोरोना महामारी के इस दौर में नर्स बेहद अहम भूमिका निभा रही हैं। जान पर खेलकर मरीजों का इलाज करने में मदद कर रही हैं। अपने घरों से दूर, परिवार से दूर रहकर अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ कर रही हैं। मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस है। इस दिन इनकी सेवा को याद करना जरूरी है, क्योंकि बिना नर्सिंग स्टाफ के इस लड़ाई को लड़ना मुमकिन नहीं है।
पहली बार नर्स दिवस मनाने का प्रस्ताव 1953 में रखा गया था, लेकिन पहली बार इसे 1965 में मनाया गया था। इसके बाद साल 1974 में यह घोषणा हुई कि हर साल 12 मई को ही नर्स दिवस मनाया जाएगा। बस तभी से इसकी शुरुआत हो गई। इंटरनैशनल नर्स डे 2020 की थीम ‘नर्सिंग द वर्ल्ड टू हेल्थ’ है। नर्सों का हमारे जीवन में काफी महत्व है। यूं भी कह सकते हैं कि हमें जिंदा रखने में नर्सों की बड़ी भूमिका होती है। नर्सों का हमारे जीवन में काफी महत्व है। यूं भी कह सकते हैं कि हमें जिंदा रखने में नर्सों की बड़ी भूमिका होती है। वह गंभीर से गंभीर मरीज की देखभाल करती हैं। अपने सुख-चैन को त्याग कर दूसरों की भलाई के लिए काम करती हैं। उनके योगदानों और बलिदान के जज्बे को सलाम करने के लिए 12 मई का दिन चुना गया। यह दिन दुनिया भर की नर्सों को समर्पित है। इस दिन अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। दुनिया की महान नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस मौके पर नर्सिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाली नर्सों को फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जाता है।
आइए इस दिन से जुड़े कुछ फैक्ट्स जानते हैं…
12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस में जन्मीं फ्लोरेंस नाइटिंगेल को एक नर्स से ज्यादा घायलों की जान बचाने वाली ‘देवदूत’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने जंग में घायल हजारों लोगों की जान बचाई थी। नाइटिंगेल का बचपन से ही ये शौक था कि वो लोगों की सेवा करें, लेकिन वर्ष 1844 में उन्होंने पूरी तरह से ये तय कर लिया कि उन्हें नर्सिंग के पेशे में ही जाना है और लोगों की सेवा करनी है।कहते हैं कि फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने जब अपने माता-पिता से ये कहा कि वो नर्सिंग की ट्रेनिंग के लिए इंग्लैंड के सैलिसबरी शहर जाना चाहती हैं तो उन्होंने इसके लिए साफ इनकार कर दिया, क्योंकि वो चाहते थे कि उनकी बेटी शादी कर ले और अपना घर बसाए। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नाइटिंगेल का एक युवक के साथ प्रेम प्रसंग भी चला था, लेकिन 1849 में उन्होंने उससे शादी करने से इनकार कर दिया और कहा कि उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा है। इसके एक साल बाद ही जब घरवालों को ये अहसास हो गया कि नाइटिंगेल शादी नहीं करेंगी तो हारकर उन्होंने नर्सिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए उन्हें जर्मनी जाने की इजाजत दे दी।
फ्लोरेंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्रीमिया के युद्ध में रहा, जब 1854 में उन्हें 38 नर्सों के साथ घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा गया। इसी समय किए गए उनके सेवा कार्यो के लिए उन्हें ‘द लेडी विद द लैंप’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। दरअसल, वो रात को भी हाथ में मशाल लिए घायल मरीजों की सेवा करने चली जाती थीं। फ्लोरेंस को ब्रिटेन की सरकार ने ‘ऑर्डर ऑफ मेरिट’ के सम्मान से नवाजा गया था। ये सम्मान पाने वाली वो पहली महिला थीं। फ्लोरेंस नाइटिंगेल लोगों की सेवा में इस कदर व्यस्त थीं कि उन्हें अपनी उम्र का भी पता नहीं चला। हालांकि लंबी उम्र और सेवा के लंबे करियर के बाद वर्ष 1910 में 90 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। हर साल 12 मई को नाइटिंगेल के जन्म दिवस को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आज के इस समय में नर्सेज की महत्वता को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड सरकार ने उपचारिका व सिस्टर के पदनाम को क्रमशः नर्सिंग अधिकारी व वरिष्ठ नर्सिंग अधिकारी किए जाने की घोषणा की है। अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के अवसर पर मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों और कई अन्य संस्थाओं के द्वारा फ्लोरेंस नाइटिंगेल को याद किया गया।